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शास्त्रों में सनातन हैं शिव साधना

शास्त्री कोसलेंद्रदास

वैदिक सनातन संस्कृति में गणपति, दुर्गा, सूर्य और परमात्मा विष्णु के अतिरिक्त पंच देवों में देवाधिदेव भगवान शिव शंकर सम्मिलित हैं। इन पांच देवताओं के पूजन-अर्चन का विधान पुरातन है। वेदों से लेकर आधुनिक संस्कृत साहित्य तक पंचदेवों पर प्रचुर सामग्री प्राप्त है। भगवान शिव के पूजन और व्रत-उपवास के लिए वर्षा ऋतु में श्रावण व भाद्रपद मास उपयुक्त काल है। इनमें भी सोमवार और दोनों पक्षों की प्रदोष तिथियों का माहात्म्य अपूर्व रीति से वर्णित है।

शिव पूजा है पुरातन
भारत रत्न डॉ. पांडुरंग वामन काणे ने धर्मशास्त्र का इतिहास में लिखा है कि शिव-पूजा संभवत: प्राचीनतम है। सर जॉन मार्शल के ग्रंथ मोहेन्जोदड़ो से पता चलता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के समय शिव-पूजा प्रचलित थी क्योंकि एक चित्र में एक योगी के चारों ओर हाथी, व्याघ्र, गैंडा एवं भैंसा पशु दिखाया गया है। शिव को पशुपति कहा गया है। महाकवि कालिदास के बहुत पहले से शिव की पूजा अर्ध पुरुष और अर्ध नारी के रूप में प्रचलित थी। कालिदास के मालविकाग्निमित्र और कुमारसंभव में शिव का अर्धनारीश्वर रूप में वर्णन है। शिव को पंचतुंड (पंचमुख-पंचानन) कहा जाता है। इनके पांच स्वरूप हैं – सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान। कालांतर में शैवों और वैष्णवों में भले एक-दूसरे के विरुद्ध पर्याप्त कहासुनी का इतिहास है पर महाभारत एवं पुराणों के काल में इनमें कोई वैमनस्य नहीं था प्रत्युत बड़ा सौहार्द एवं आपसी सहिष्णुता थी।

द्वादश ज्योतिर्लिग हैं स्थापित
शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता (अध्याय 42) में 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख है और ये ज्योतिर्लिंग रुद्र के साक्षात अवतार कहे गए हैं। ये हैं – सौराष्ट्र (गुजरात) में सोमनाथ, श्रीशैल पर्वत (आंध्रपदेश के कर्नूल में) पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकाल, ओंकार-क्षेत्र (नर्मदा द्वीप) में अमलेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमाशंकर (पूना में भीमा नदी के निकास-स्थल पर), काशी में विश्वेश्वर, गौतमी (गोदावरी, नासिक के पास) के तट पर त्र्यंबकेश्वर, चिताभूमि (झारखंड) में वैद्यनाथ, दारुकावन में नागेश, सेतुबंध में रामेश्वर एवं शिवालय (देवगिरि या दौलताबाद से 7 मील दूरी पर एलूर नामक ग्राम) में घुष्मेश। कुछ कारणों से राजस्थान के सवाई माधोपुर के शिवाड़ ग्राम में भी लोग घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।

शिव की नगरियां, काशी और कांची
ब्रह्माण्डपुराण में आया है कि काशी (उत्तर प्रदेश) एवं कांची (तमिलनाडु), दो नगरियां भगवान शिव की दो आंखें हैं। यद्यपि कांची प्रसिद्ध वैष्णव क्षेत्र है किंतु वहां भगवान शिव का सान्निध्य है। बार्हस्पत्यसूत्र (3/124) में ऐसा उल्लेख है कि कांची एक विख्यात शाक्त क्षेत्र है और देवीभागवत (7/38/8) में आया है कि कांची अन्नपूर्णा नामक देवीस्थान है। कांची मंदिरों एवं तीर्थों से परिपूर्ण है, जिनमें अत्यंत प्रसिद्ध है पल्लव राजसिंह द्वारा निर्मित कैलासनाथ का शिव-मंदिर एवं विष्णु का वैकुंठ पेरुमल मंदिर। भगवान विश्वनाथ वाराणसी के रक्षक देव हैं और इनका मंदिर सर्वोच्च एवं परम पवित्र है। विश्वनाथ मंदिर जब औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया गया तो एक सौ वर्षों से अधिक समय तक बनारस में विश्वनाथ का कोई मंदिर नहीं रह गया। वहां का शिवलिंग समय-स्थिति के फलस्वरूप एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखा जाता रहा और श्रद्धालु गंगाजल से शिवलिंग को स्नान नहीं करवा पाते थे। तब आधुनिक विश्वनाथ मंदिर अहल्याबाई होल्कर द्वारा 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में बनवाया गया। त्रिस्थलीसेतु ने लिखा है कि विश्वेश्वर लिंग किसी भी स्थिति में अपवित्र नहीं होता और कोई पापी भी उसे छूकर उसकी पूजा कर सकता है।

आयु के लिए मृत्युंजय मंत्र जप
जब कोई भी स्त्री या पुरुष आयु के 60 वर्ष पूरे कर लेता था तो उस व्यक्ति के रोग और मृत्यु के भय को दूर करने के लिए एक शांति यज्ञ व्यवस्थित है, जिससे वह लंबी आयु पा सके एवं सभी प्रकार की विपत्तियों से मुक्त रहे और उसे समृद्धि प्राप्त हो। इस शांति को षष्ट्यब्द-पूर्ति या उग्ररथ-शांति कहा जाता है। उग्ररथ-शांति का प्राचीनतम उल्लेख बौधायनगृह्यसूत्र (5/8) में है। इसका संपादन जन्म के मास एव नक्षत्र में होता है। जन्म के दिन जब व्यक्ति 60 वर्ष का हो जाता है तब वह शुभ स्नान करता है। पुरोहितों को निमंत्रित गणेश-पूजा की जाती है। पुण्याह-वाचन होता है, मातृ-पूजा की जाती है और तब नांदीश्राद्ध किया जाता है एवं नवग्रह-पूजा होती है। इसके बाद मृत्युंजय भगवान शिव के सम्मान में 10000 तिलाहुतियां दी जाती हैं। स्मृतिचंद्रिका ने कूर्मपुराण का उद्धरण देकर कहा है कि शिव की पूजा रुद्रगायत्री या त्र्यंबक मंत्र या ओम् नम: शिवाय मंत्र से की जा सकती है।

वायुपुराण और शिवपुराण
वायु एक शुद्ध महापुराण है पर शिवपुराण पश्चात्कालीन कृति है। यह मात्र उपपुराण है। अल्बरूनी में इसके विषय का प्राचीनतम संकेत एवं उल्लेख है। यह सात संहिताओं में विभक्त है – विद्येश्वर, रुद्रसंहिता (सृष्टि, सती, पार्वती, कुमार एवं युद्ध नामक पांच भागों में), शतरुद्र, कोटिरुद्र, उमा, कैलास, वायवीय (दो भागों में)। इसमें लगभग 23000 श्लोक हैं। कोटिरुद्रसंहिता (अध्याय 35) में शिव के एक सहस्र नाम दिए हुए हैं।

महेश्वर के 28 अवतार
शास्त्रों में भगवान विशेषण शिव के लिए प्रयुक्त है। श्वेताश्वतर—उपनिषद ने शिव को सर्वव्यापी और भगवान कहा है। पाणिनि पर अपने भाष्य में पतंजलि ने शिव-भागवत का उल्लेख किया है, जिसका तात्पर्य उस भक्त से हैं जो अपने साथ शिव के आयुध त्रिशूल को लेकर चलता है। अमरकोष ने शिव को ईश्वर और सर्वज्ञ कहा है। पुराणों ने भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के क्रिया-कलापों का पर्याप्त उल्लेख किया है किंतु ऐसा नहीं समझना चाहिए कि शिव के अवतार नहीं थे। वायुपुराण (अध्याय 23) ने महेश्वर के 28 अवतारों का उल्लेख किया है, जिनमें अंतिम है नकुली। संस्कृत साहित्य के अमर कवि कालिदास ने शिव के अर्धनारीश्वर रूप का उल्लेख किया है और अभिज्ञान-शाकुंतल में उन्हें अष्टमूर्ति रूप में वर्णित किया है।

सगुण और निर्गुण हैं शिव
11वीं शती के तंत्र-ग्रंथ शारदातिलक में आया है कि शिव निर्गुण एवं सगुण, दोनों हैं। इनमें प्रथम प्रकृति से भिन्न और दूसरे प्रकृति से संबंधित हैं। सगुण परमेश्वर से, जो सच्चिदानंद—विभव कहा जाता है, शक्ति का उद्भव होता है। शक्ति से नाद (की उत्पत्ति होती है। नाद से बिंदु का उद्भव होता है और बिंदु तीन भागों में विभक्त है – बिंदु (अपर), नाद (अपर) एवं बीज। प्रथम का शिव से तादात्म्य है, बीज शक्ति है और नाद दोनों अर्थात् शिव एवं शक्ति का सम्मिलन है। शारदातिलक (1/73) में एक पंचाक्षर मन्त्र है – नमः शिवाय, जो लिंगपुराण से यहां आया है। यही मंत्र छह अक्षरों वाला हो जाता है जब ओम् पहले लगा दिया जाता है। कश्मीर के शैव संप्रदाय से संबंधित भट्ट वामदेव कृत जन्ममरणविचार नामक ग्रंथ में आया है कि शिव की तीन शक्तियां हैं – चित (जो प्रकाश या चेतना के समान है), स्वातन्त्र्य (इच्छा-स्वातंत्र्य) एवं आनंद शक्ति। रामचरितमानस में प्रभु शिव और माता पार्वती श्रद्धा और विश्वास के रूप हैं, जिनसे ज्ञान, वैराग्य और भक्ति प्राप्त होते हैं।

लेखक जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में दर्शन एवं योग विभाग के प्रमुख हैं

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