– धीरज भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार
हिन्दुस्तान में 59 लाख से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 93,410 संक्रमित कोरोना वायरस की वजह से अब अपनों के बीच में नहीं हैं। 10.17 लाख सक्रिय मामले देष में हैं जिनमें से 48.46 लाख नागरिक कोरोना की जंग जीत चुके हैं।
सबसे बड़ी ग़लती सरकारी तौर पर प्रबंधन में हुई है। जब देष में कोरोनो के चुनिंदा मामले थे उस वक्त ’लॉक डाउन’ घोषित किया गया था। हम मान सकते हैं कि ये क़दम कोरोना के मामले बढ़ने से रोकने के लिये नहीं बल्कि आने वाले वक्त में गंभीर हालातों से निपटने के लिये ख़ुद को तैयार करना था। इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूर करना था। लेकिन हिन्दुस्तान के सभी राज्य की लाचार सरकारें शतुर्मुग बनी हुई रहीं। हुक्मरान ये भूल गये कि कबूतर के आंख बंद कर लेने से घात लगाये बैठी बिल्ली दावत ज़रूर उड़ायेगी!
ग़ौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने बहुत पहले ही आपदा प्रबंधन पर ख़र्च होने वाली राज्यों की राषि को कोरोना से लड़ने के लिये उपयोग में लेने की अनुमति दे दी थी, लेकिन अदूरदर्षिता का आलम ये है कि राजस्थान में तो उस राषि को प्रयोग में लेना अब शुरू किया गया है। पहले दिन से ही पता था कि कोरोना वायरस सीधे फ़ेफ़ड़ों पर असर करता है, सांस लेने में दिक्कत होती है। लेकिन अभी तक राजस्थान के ज़िला हस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट्स सुचारू नहीं हो पाये हैं। बड़े हस्पतालों में आईसीयू बेड्स नहीं हैं।
…और अब भारत में सरकारों ने कोरोना का ईलाज विज्ञान की बजाय अंकगणित से करना शुरू कर दिया है। तभी तो संक्रमण से मुक्त हुए लोगों का आंकड़ा ढ़ोल पीट कर बताया जा रहा है।
आखि़र चूक कहां हो रही है?
साफ़ दिखाई देता है कि कोरोना वायरस के हिन्दुस्तान में आग़ाज़ पर पूरे देष ने साथ मिल कर ताली-थाली-षंख बजा कर ख़ूब शोर मचाया। मानो कि चन्द लोगों के शरीर में घुसा कोरोना वायरस आवाज़ की ब़ढ़ती आवृत्ति से परेषान हो कर भाग जायेगा। हम उसके भागने का इंतेज़ार करते रहे और वो चुपचाप अपने पैर पसारता गया। ऐसा फैला कि लोग अपनी कर्मभूमि छोड़ कर नगे पांव ही अपनी मातृभूमि की तरफ़ दौड़ पड़े। जब कोरोना को बहरा नहीं कर पाये तो सोचा कि चलो दिये जला कर उसकी आंखों को चुंधिया दिया जाये, शायद रास्ता भटक जायेगा। कोरोना बिदक गया और उसने अपने पैर पसारना शुरू कर दिया। फिर देष को आख़री रास्ता दिखाया गया, अंधेरा कर देते हैं। जब कुछ दिखेगा ही नही ंतो कैसे किसी के पास पहुंचेगा? टोने-टोटके का असर कोरोना पर तो नहीं हुआ, अलबत्ता नाराज़ वायरस ने ’मन की बात’ भी नहीं सुनी और हिन्दुस्तानियों को अपनी चपेट में ले लिया।
किससे हो रही है?
किसके सर पर ठीकरा फोड़ा जाये? केन्द्र सरकार पर? राज्य सरकारों पर या कि रोटी-कपड़े की जुगाड़ और मकान की किष्तो की चिंता में, अपनी कम हो चुकी तनख़्वाह में, नौकरी बचाने या नया काम ढूंढने में जुटे आम हिन्दुस्तानी पर? बात बिल्कुल सीधी स़ी है-अगर युद्ध में सेनापति आदेष देना बंद कर दे तो सेना दिषाहीन और बेलग़ाम हो जायेगी। ऐसा ही हुआ है और आज भी हो रहा है। करोड़ो रूपये का फंड कहां खप रहा है, कोई नहीं जानता। जानेगा भी कैसे? पूछना तो मना है। इस वैष्विक महामारी की आड़ में कई राज्यों से बड़े घपलों की भी ख़बर छपने लगी हैं। यानि सरकारी हुक्मरान कोई भी मौक़ा चूकना नहीं चाहते और आम लोग ’फ़न्ने खां’ बने हुए हैं।
क्यों हो रही है?
रोज़ ’अनलॉक-4’ की सूचना के साथ घर से ना निकलने की हिदायत टीवी, रेडियो पर सुना कर और अख़बारों में छपवा कर सरकारें अपनी ज़िम्मेदारी से इतिश्री कर रही हैं। आम आदमी ने भी ’कोरोना की ऐसी-तैसी’ वाला रूख़ अपना लिया है। मास्क से मुंह-नांक ढ़कने की बजाय या तो ढ़ोड़ी पर टिकाये रहते हैं या फिर जेब में ठूंसे रहते हैं। ना ख़ुद की चिंता न दूसरे की। वहीं जनता के प्रतिनिधि खुलेआम मसखरी कर रहे हैं। राजस्थान में टोंक से सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने स्वंय का अर्द्धनग्न अवस्था में मिट्टी स्नान सोषल मीडिया पर डालते हुए दावा किया था कि जो भी व्यक्ति मिट्टी में लोटेगा और शंख फूंकेगा उसका कोरोना कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा। कोरोना वायरस को अपने अस्तित्व पर ख़तरा महसूस हुआ और उसने सांसद महोदय को ही लपेट लिया। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने ’भाभी जी के पापड़’ को कोरोना का सटीक ईलाज बताया और ख़ुद जम कर पापड़ भी खाये, लेकिन कोरोना ने उन्हें भी अपने गले लगा लिया।
ये सच है कि वक़्त सकारात्मक यानि पॉज़िटिव सोच रखने का है, लेकिन आज के माहौल में हर व्यक्ति जांच रिपोर्ट का परिणाम ’नेगेटिव’ चाहता है। क्योंकि कोविड़-19 संक्रमण का तोड़ अभी तक किसी के भी पास नहीं हैं। इससे भी गंभीर बात ये है कि यूरोप में कोरोना लौट के आ गया है। दूसरी वेव अधिक प्रचंड है। स्पेन और फ्रांस में कोरानेा के नए केस अचानक से बढ़ रहे हैं। इंग्लैड में भी यही हालात हैं। सरकारें और स्वास्थ्य तंत्र हैरान, परेषान है कि आखि़र हो क्या रहा है। जर्मनी और इटली में भी नए केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
अगर हम सोच रहे हैं कि ’एक बार हो जाये तो अपन तो हो लिये कोरोना-प्रूफ’ तो सोच बदलनी होगी। अगर ठीक होते लोगों के आंकड़े देख कर मान बैठे हैं कि कोरोना ज़्यादा कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है तो ग़लतफ़हमी दूर करनी चाहिए क्योंकि हर एक जान महत्वपूर्ण है और हर मौत साबित कर रही है कि ईलाज का ना होना और संक्रमण का न रूकना गंभीर समस्या है।
बस! अगले महीने वैक्सीन आ जायेगी। ऐसी चर्चायें आम हैं। लेकिन किसी ने भी यह समझने की कोषिष नहीं की है कि हर दिन अपना मिजाज़ बदल रहे वायरस को निपटाने के लिये जूझते वैज्ञानिक स्वंय नहीं जानते कि कब तक वैक्सीन तैयार हो जायेगी। अभी यह कहना लगभग असम्भव है कि वैक्सीन कितने दिन तक काम करेगी। एक अंदाज़ मान लेते हैं कि वैक्सीन एक साल तक काम करेगी तो आप ख़ुद सोच कर देखिये कि क्या इस पूरे विष्व की सात अरब 80 करोड़ जनता को एक साल में वैक्सीन लगा देने का कोई पुख़्ता ’प्लान’ है? जब तक वैक्सीन लगने का पहला दौर ख़त्म भी नहीं हो पायेगा उससे पहले ही करोड़ो लोग फिर से दूसरे चरण की वैक्सीन लगवाने के लिये तैयार खड़े होंगे। ये मान लेना चाहिए कि कोई भी वैक्सीन 2021 की दूसरी तिमाही से पहले तैयार नहीं हो पायेगी। अभी महज़ एक वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य विभाग ने मंज़ूरी दी है लेकिन उस पर भी सुरक्षा को लेकर सवाल उठे है क्योंकि उसके क्लीनिकल ट्रायल का तीसरा चरण शुरू नहीं हो पाया है।
कोरोना वायरस को लेकर लगाये जा रहे लगभग सभी अनुमान या घोषणायें 7 दिन के भीतर ग़लत साबित हो जाती है। डॉक्टर्स के लिये पहेली बन चुका कोरोना वायरस केरल के जोसेफ को 3 बार संक्रमित कर चुका है, तो फिर यह सोच कर इत्मीनान कर लेना कि एक बार हुआ तो एंटीबॉडीज़ बनने से सुरक्षित हो जायेंगे, लापरवाही कहा जायेगा। छत्तीसगढ़ में संक्रमित मरीज़ पहले 10 दिन में ठीक हो रहे थे, अब 15 दिन में ठीक हो पा रहे हैं। हालांकि रिकवरी रेट बढ़ा है, लेकिन सिर्फ़ इसलिये लोग लापरवाही बरतें तो ठीक नहीं होगा। मुंबई के 4 हेल्थवर्कस को 19 से 65 दिन में कोरोना ने दूसरी बार अपनी गिरफ़्त में ले लिया और बड़ी बात ये है कि रिकवरी के बाद उनके शरीर में एंटीबॉडी नहीं बनी थीं।
अमरीका की मिषिगन यूनिवर्सिटी में कोरोना के 352 मरीज़ो पर रिसर्च के दौरान पाया गया कि कोरोना संक्रमण के बाद मरीज़ों में ैनच्।त् (सॉल्यूबल यूरोकाइनेज रिसेप्टर) प्रोटीन बढ़ जाता है जो किडनी में इंजरी की वजह से बनता है। यह शोध अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ नेफ्रोलॉजी जर्नल में प्रकाषित हुई है।
हर दिन मिजाज़ बदल रहा कोरोना वायरस कब और कैसे हमला करेगा समझ से परे हो गया है। पहले खांसी, बुखार, गले में ख़राष कोविड के लक्षण थे, लेकिन अब मरीज़ों की रिपोर्ट निगेटिव आने के बावजूद दर्द, थकान, कमज़ोरी और सांस लेने में तकलीफ़ जैसे लक्षणों के साथ फेफड़ों में संक्रमण बढ़ रहा है। मीड़िया में प्रकाषित ख़बरों के मुताबिक़ फेफ़ड़ों के संक्रमण के चलते जिन 9 लोगों की मौत हुई थी उन सब की कोविड-19 रिपोर्ट निगेटिव थी लेकिन उनके सीटी-स्केन में संक्रमण स्पष्ट देखा गया।
महत्वपूर्ण ये है कि हिन्दुस्तान में अभी सर्दिया आना बाकी हैं और कोविड़ का ’पीक’ भी। पब्लिक हेल्थ इग्लैण्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़ जनवरी से अप्रैल के बीच 58 ऐसे मामले सामने आए जिन्हें फ्लू और कोरोना एक साथ हुआ। इनमें कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 27 फीसदी और फ्लू की चपेट में आने के बाद 43 फीसदी मरीज़ों की मौत हो गयी।
मतलब! अगर रिपोर्ट निगेटिव भी आ जाये तो भी सावधान रहें, अपने परिवार और मित्रों को सुरक्षित रखें और आइसोलेषन का समय पूरा करें। यदि लक्षण बने हुए हैं तो चिकित्सक की सलाह पर दूसरी जांचे अवष्य करवायें। ख़तरा! हैं आने वाला वक़्त। अब मौसम बदल रहा है। सर्दियां दस्तक देंगी और मौसमी बीमारियां भी लगेंगी। तो ऐसे में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ायें। बचिए! बेवजह घूमने-फिरने से। झुण्ड में बैठ कर गप्पबाज़ी करने से और ऐसा सोचने से- कुछ नहीं होता, देखा जायेगा।