-अशोक ‘’ आजकल’’
देशकी राजधानी से जुड़े सीमावर्ती राज्यों के बोर्डर्स पर किसान आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन महत्वपूर्ण कानूनों को वापस लेने से जुड़ा भारतीय किसान यूनियनों का धरना अभी समाप्त नहीं हुआ है । किसान किसी भी तरह के अधिनियम संशोधन के लिए राजी नहीं हैं और वे हाँ या ना के अलावा सरकार से किसी भी तरह की बातचीत के मूड में नहीं हैं . गत शनिवार को किसानों ने की हाइवे बंद करने की धमकी भी दी थी लेकिन सभी हाइवे खुले रहे। यूनियन ने फिलहाल यातायात के लिए चिल्ला बॉर्डर खोल दिया है यह संघर्ष के नरम रुख को बतलाता है । कृषि कानूनों को लेकर धरना देने और आरपार की लड़ाई के लिए वे तैयारी में लगे हैं . यह भी फैसला किया हाय है की यह आंदोलन 19 दिसंबर के बाद नया मोड लेगा। इसदिन अनिश्चित कालीन हड़ताल शुरू किया जाएगा। इधर सरकार संशोधन के साथही इस आंदोलन पर विचार करना होगा ताकि गतिरोध समाप्त हो॥ यह धराना अभी 17 वें दिन भी जारी है॥अगर यह आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो देश की सत्तारूढ़ दल की 6 थे दौर की वार्ता भी भंग हो गई है। और अभी भी किसान अपनी मांगों पर अदा है ॥ एम एस सी को बढ़े बिना अन्नदाता को अपने अनाज के सही मूल्य नहीं मिलेंगे इसके अलावा मंडी की समस्याओं के भी गंभीर होने की स्थिति बन जाएगी। अभी की स्थिति में राष्ट्रीय राजमार्ग जाम करने की घोषण होने की पूरी संभावना है। इन सब बातों को लेकर यह बात सामने आरही है कि किसान नेता किसी भी तरह के संशोधन के लिए तैयार नहीं हैं और कानून को जो संसद के दोनों भवनों से पारित हो चुके हैं उनको वापस लेने की मांग पर अड़ा है जो केंद्र सरकार के गले उतरती नहीं लगती।
केंद्र शासित भाजपा सरकार विगत दो आम चुनावों के बाद पूर्ण बहुमत में है जिसने आजादी के बाद राष्ट्र के बहुत संवेदनशील महत्वपूर्ण समस्याओं को शांतिपूर्ण संसदीय प्रक्रिया से सुलझाया है । इनमें कश्मीर -लद्दाख से 370 धार का निर्मूलन और इन राज्यों को केंद्र शासित राज्य बनाने का महत्वपूर्ण कानून बनाया है। देश में तीन तलाक के संवेदन शील मुद्दे को सुलझाकर मुस्लिम महिलाओं को उनका मौलिक अधिकार दिलाने का भी कानून पारित करवाया है देश की रक्षा व्यवस्था मजबूत करने और देश को चीन और पाकिस्तान की राष्ट्रविरोधी हरकतों से दूर करने और आतंकवादी ताकतों पर नियंत्रण करने में वर्तमान सरकार सफल हुई है। इसी तरह से कृषि उपज को लेकर बनाए कानून को भी संसद में पारित करके उन पर राष्ट्रपति की मुहर भी लगवाकर नीतिगत सफलता अर्जित की है। लेकिन कुछ विपक्ष की मिली भगत और किसानों के अड़ियल रवैये के कारण किसान आंदोलन की कानून वापस लेने की मांग केंद्र सरकार को न्यायपूर्ण नहीं लगती सरकार कुछ साँसोधनों के साथ ही इन मांगों पर विचार करना चाहता है॥ फिलहाल सबकुछ अनिश्चित है और गतिरोध बना हुआ है जिसके कारण आंदोलन विपरीत दिशा में भी जा सकता है जिसके परिणाम हिंसक हो सकते हैं कुछ राष्ट्रविरोधी टाकतें भी इसे हवा देने में लगी हैं और सरकार को ऐसे इमपुटस भी मिले है॥ देखना यह है की अन्नदाताओं का यह आंदोलन गलत हाथों में हाइजेक नहीं हो जाए और शांतिपूर्व समाजान निकाल जाए॥ बार हाँ या ना से नहीं या आरपार की लड़ाई से नहीं जाजम में साथ बैठकर स्थाई समाधान से ही निकलेगी। संविधान और लोकतंत्र की मर्यादित सीमाओं में जन विरोधी शक्तियों के पराभव के साथ॥ सत्यमेव जयते॥ आखिर में विजय सत्य की ही होगी।
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