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घाटी में अमन से बौखलाते आतंकी

-प्रो. राकेश गोस्वामी

बीते तीन दिनों में पांच हत्याओं से कश्मीर लहूलुहान हो गया है। मंगलवार को आतंकियों ने तीन घंटे के भीतर तीन नागरिकों को मार डाला और गुरुवार को श्रीनगर में दो शिक्षकों को मौत के घाट उतार डाला। इन पांच में से चार गैर-मुस्लिम हैं। दरअसल, धारा—370 हटने और राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन के बाद जम्मू—कश्मीर में सकारात्मक बदलाव दिख रहे हैं। ऐसा लगने लगा था कि जल्दी ही घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी हो सकेगी। अमन—चैन का यह माहौल उन ताकतों को रास नहीं आ रहा, जो घाटी में आतंक के खैरख्वाह रहे हैं।

मंगलवार शाम आतंकियों ने श्रीनगर के मशहूर दवा विक्रेता मक्खन लाल बिंदरू की गोली मारकर हत्या कर दी। 68 वर्षीय बिंदरू उन चुनिंदा कश्मीर पंडितों में से थे, जिन्होंने 1990 के दशक के कत्लेआम के बावजूद घाटी से पलायन नहीं किया। बिंदरू ने हमेशा श्रीनगर की सेवा की। उनकी दवाई की दुकान के बारे में मशहूर था कि जो दवा कहीं नहीं मिलेगी बिंदरू की दुकान पर मिलेगी। बिंदरू की हत्या की चंद मिनटों बाद ही आतंकियों ने श्रीनगर की लाल बाजार में चाट का ठेला लगाने वाले वीरेंद्र पासवान को और बांदीपोरा में टैक्सी यूनियन अध्यक्ष मोहम्मद शफी लोन की गोली मारकर हत्या कर दी। इन हत्याओं के बाद द रेजिस्टेंट फ्रंट नामक लश्कर की एक संस्था ने एक बयान जारी कर कहा कि बिंदरू राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ता थे और हम सिर्फ उन्हें मारते हैं जो कश्मीर-विरोधी गतिविधियां करते हैं, मासूमों को नहीं।

एक ही दिन हुई इन तीन हत्याओं से कश्मीर ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने कश्मीर में 1990 के दशक की वापसी को लेकर डर जताना शुरू कर दिया। याद दिला दें कि नब्बे के वर्षों में पंडितों को रातों-रात पलायन करना पड़ा था। उस समय के कत्लेआम में लगभग 700 हिंदू शहीद हुआ थे। पंडितों की हिट लिस्ट बनाई गई। स्थानीय अखबारों में गुमनाम संदेश के रूप में पंडितों के घाटी छोड़ने फरमान सुनाया गया। जो हुआ होगा, उसके बारे में सोचते ही रूह कांप जाती है। आतंकी इसे दोहराने की स्थिति में तो नहीं हैं, लेकिन वे हत्याएं कर कश्मीर में हिंदुओं के मन में डर बैठाना चाहते हैं, जिससे घाटी में उनकी वापसी के प्रयासों की रफ्तार सुस्त पड़ जाए।

आतंकी दहशत फैलाने की साजिश में सफल भी होते दिख रहे थे, लेकिन मक्खन लाल बिंदरू के बेटी के सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने स्थिति उलट दी है। इसमें डॉ. श्रद्धा बिंदरू ने दहशतगर्दों को ललकारते हुए कह रही हैं कि जिसने भी मेरे पिता को मारा है हिम्मत है तो मेरे सामने आए और बहस करे। उनके परिवार ने कहा कि बिंदरू की हत्या जिस षड्यंत्र के लिए हुई है उसे वो विफल करेंगे। बिंदरू परिवार के इस साहस की जितनी सराहना की जाए, कम है। उनकी इस सोच को नजीर बनाकर दूसरे कश्मीरियों को भी ये साबित करना चाहिए कि आतंकी कितने भी जुल्म क्यों न कर लें, उनके नापाक इरादे कभी कामयाब नहीं होंगे।

बिहार के भागलपुर के वीरेंद्र पासवान नें रोजगार की तलाश में कश्मीर का रुख किया होगा। बिहार के निवासी अपनी जीजीविषा के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं। वो किसी भी चुनौती के सामने डिगते नहीं। जम्मू की सड़कों पर भी भारी मात्रा में बिहार के लोग ठेला लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो कई पीढ़ियों पहले यहां आए और फिर एक एक करके गांव के दूसरे लोगों को भी बुला लिया। लेकिन आतंकियों को ये गवारा नहीं है। अपने बयान में उन्होंने धमकी दी कि बाहरी लोग कश्मीर आकर स्थानीय लोगों के रोजगार न छीनें। दिन भर में लगभग 250 रुपये कमाने वाले वीरेंद्र पासवान ने भला किस कश्मीरी का रोजगार छीना होगा? वो तो बिंदरू की तरह कश्मीरी भी नहीं था कि उसकी मौत पर सियासी हंगामा हो और सड़कों पर आक्रोश का प्रदर्शन हो।

कश्मीर में बदलते हुए माहौल की मुनादी इस वर्ष स्वाधीनता दिवस दिन आई तस्वीरों ने भी की थी। समूचे कश्मीर के सरकारी स्कूलों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। पुलवामा जिले के एक विद्यालय में तो जुलाई 2016 में मारे गए हिजबुल के आतंकवादी बुरहान वानी के पिता व शिक्षक मुजफ्फर वानी ने ध्वज फहराया। इन तस्वीरों ने पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं को जरूर परेशान किया होगा। इसीलिए श्रीनगर के ईदगाह इलाके में दो शिक्षकों की हत्या कर दी गई। इसकी जिम्मदारी लेते हुए द रेजिस्टेंट फ्रंट जो बयान जारी किया उसमें कहा गया कि इन शिक्षकों ने अभिवावकों पर अपने बच्चों को स्वाधीनता दिवस के रोज स्कूल भेजने का दबाव डाला था। तीन दिन मेंपांच मासूमों की हत्या करके आतंकी क्षणिक रूप से तो खुश हो सकते हैं, लेकिन भारत की सुरक्षा एजेंसियों से ज्यादा दिन तक बच पाना नामुमकिन है।

घाटी में इस वर्ष आठ अल्पसंख्यों की हत्या हो चुकी है। आतंकियों की दरिंदगी का पहला शिकार बने थे स्वर्णकार सतपाल निश्चल जिन्हें 1 जनवरी कोमारा गया था। उसके बाद 17 फरवरी कोकृष्णा ढाबा के मालिक आकाश मेहरा की हत्या हुई। गौर करने वाली बात है कि तीनों व्यापारी– निश्चल ज्वैलर्स के सतपाल निश्चल, कृष्णा ढाबा के आकाश मेहरा और बिंदरू मेडिकेट के मक्खन लाल बिंदरू, 90 के दशक के उग्रवाद के बावजूद घाटी में रूके रहे और अपना-अपना कारोबार जारी रखा। आलगाववादी नेताओं ने 90 के दशक के पलायन के बाद जो नरेटिव बनाया वो यह था कि तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने हिंदुओं को इसलिए घाटी से निकाल दिया ताकी प्रशासन मुसलमानों की हत्या कर सके। लेकिन अब तो न जगमोहन हैं और न ही ये नरेटिव बन पाएगा। अब इस सोच के लोग किसके माथे पर दोष मढेंगे?

कश्मीर ने बहुत कुछ देखा है और कश्मीर बहुत कुछ देख रहा है। कब तक कश्मीर लहुलुहान होता रहेगा? कब तक यहां गोलियां चलेंगी? कब तक कश्मीरी सहता रहेगा? चार दिन के शोर के बाद सब भूल जाएंगे। आप भी भूल जाएंगे। हम भी भूल जाएंगे। कौन था, क्यों मरा? लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को सब याद है। सबका हिसाब चुकता होगा। आतंकियों को याद रखना चाहिए कि बदलते भारत के हिंदु अब उनके जुल्में से डरेंगे नहीं बल्कि उनका डटकर मुकाबला करेंगे। और घाटी धरती की जन्नत रहेगी, जहन्नुम नहीं बनेगी।


प्रो. (डॉ) राकेश कुमार गोस्वामी भारतीय जन संचार संस्थान जम्मू के क्षेत्रीय निदेशक है

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