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भगवान और भगदड़ के भरोसे भारत माता

– अशोक आजकल

भगवान और भगदड़ के भरोसे भारत माता।
आज शर्मसार है। लगभग खामोश।
तमाशबीन भीड़ दोनों तरफ है।
कौन किधर कुछ भी तय नहीं ।
मगर अफसोस की आग सुलग रही है सब जगह।
बंद दरवाजों और खुले राजमार्गों में अनिश्चय। आक्रोश। असमंजस। अराजकता।

जूते और झूठ और नफरत की नोक पर
अनियंत्रित बहशीपन और अभिशप्त महत्वाकांक्षाओं से लदे
निहित स्वार्थों और लबालब वासनाओं से लबरेज
कथित जन आन्दोलन अगर लालकिले की प्राचीर पर हिंसक ताण्डव करता
और अहिंसक और नपुंसक व्यवस्था हाथ पर हाथ धरे तमाशबीन ठगी ठगी आंखो से यह सब देखती है तो
केवल भगवान और भगदड़ के भरोसे ही
छोडा जासकता है भारत माता को।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र
क्या यही सब देखने के लिए हम पिछले कई दशकों से
पीट रहे हैं
ढोल जनत॔त्र का
थाली कटोरी और शंख
बजाने और सुबह शाम दिया बत्ती करने और हनुमान चालीसा पढने से लोकत॔त्र की रक्षा नहीं की जाती है
सत्ता धर्म भीरुओं और नपुंसकों का कभी सम्मान नहीं करती। कर्तव्य परायणों व अनुशासन शान्तिकर्मियों का
पग पग पर उन्हे अपमानित करती है
लांछित करती है
और एकदिन बोरिया बिस्तर गोल।
कल जो भी लालकिले में हुआ। आजादी के बाद भारत का सबसे बड़ा अपमान। आन्दोलन के नाम पर पथराव लाठी तलवार काखुल्लमखुल्ला प्रयोग और गणतंत्र परेड की तरफ आक्रामक पथभृष्ट्र भगदड़ ।लालकिले में तिरंगे का तिरस्कार और अपमान और धर्मान्धता।
देश के झण्डे के अपमान की प्यास लाखों करोड़ों के रक्तपात से भी नहीं बुझ सकती। हजारों सदियों से सहा है यह नारकीय नरसंहार का नाटक हमारे धर्मभीरु जन जन ने। पल पल यह छल ।
और कब तक सहेंगे हम?

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