
-अशोक आजकल
कोई कुछ कह रहा है
मगर बोलता नही
कोई सब सुन रहा है
मगर कर्णहीन
कोई सब देखता है
नेत्रहीन होकर भी
कौन है वह
कोई तो है
अपरम्पार
अद्वितीय।
शब्दातीत।
अकर्ता।
मित्रो , यह हमारी वैदिक संस्कृति का ज्ञान है जो आधुनिक विज्ञान से बिलकुल भिन्न है।एक ही जलवायू और मिट्टी से बने देश काल और परिस्थितियों – ज्ञान विज्ञान और अज्ञान में कितना अंतर आ जाता है यह देख ने और अनुभव करने की चीज है । हजारों साल पहले की भाषा वेषभूषा और व्यवहार मे जबर्दस्त परिवर्तन आ जाता है यह मानव इतिहास और समाज विज्ञान दोनों बतलाते हैं ।हम यहाँ ब्रह्म विद्या और आज के जमाने के विज्ञान की विस्तार से तुलना नही कर रहे बल्कि व्यावहारिकता के लिए यह बात कर रहे हैं जो कुछ आज हमारे सामने इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में हो रहा है जो उच्छङ्खृलता और बड़बोलापन हमें आज दिख रहा है वैसी ही या उससे मिली जुली स्थिति भरतमुनि के काल में भी रही होगी तभी हमें आसुरी वृत्ति के लोगों के लिए अलग नाट्यशास्त्र लिखने की जरूरत हुई…वेदों के बाद स्मृतियाँ भी इसी लिए लिखी गई ताकि समाज को अनुशासित रखा जा सके.
यह सामाजिक मर्यादा नैतिकता प्रतिबंध नियम कायदों के नाम पर सदैव थोपी जाती है तथा इससे इससे समाज अलग अलग भागों मे विभाजित हो जाता है। धर्म और राजनीति की इसमें विशेष भूमिका होती है। कला साहित्य संस्कृति इसकी अनुगामी बन जाती है । भारत की आजादी के बाद बनने वाले भारत के संविधान के कारण अलग अलग मतों व मान्यताओं से जुड़े लोगों में आज भी
संविधान को लेकर व्यापक मत मतांतर और विरोध है और देश व्यापी राजनैतिक दलों में भी इसी लिए घमासान देखने को मिलता है। यह भारतीय संविधान की लोकतंत्रीय भूमिका के लिए बुरी बात नहीं है लेकिन अगर हमारी विचार और गतिविधियां और आंदोलन जब अतिवादी दिशा ले लेते है और संविधान विरोधी आचरण पर उतारू हो जाए हैं तो स्थिति सोचनीय हो जाती है। यह जब जब भी व्यापक रूप में कोई विशेष बदलाव आता है तो होता है। आज जम्मू कश्मीर की धारा 370 व 35 ए के उच्छेदन को लेकर यही स्थिति पैदा की जा रही है जिसको भारतीय संवैधानिक प्रक्रिया से ही लागू किया गया है और जिसे भारतीय बहुमत ने व्यापक रूप से स्वीकार किया है । इसके पूर्व भी ऐसे कई विवादों को लेकर देशव्यापी चर्चा गरम होती रही है। यह सब जनतंत्र का अपरिहार्य अंग है।
हमारे देश में जनतंत्र की जड़ें अब गहरी हो चुकी हैं । यह विश्व का सबसे बड़ा मर्यादित लोकतन्त्र है।
देश की आजादी के बाद गठित संवैधानिक सभा ने भारतीय संविधान का निर्माण किया जिसमें विश्व के सभी संविधानों की अच्छी बातें शामिल की गई । यह संविधान देश की जनता के लिए जनता के द्वारा और जनता का अपना मौलिक संविधान है जो देश की सीमाओं और मानवीय मूल्यों आस्थाओं और विकास की गारती देता है।
देश में आजादी के बाद सभी रियासतों का विलय देश में भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्वीकृति के साथ हुआ। कश्मीर के अलावा और भी रियासतें अलग अलग मर्यादों और क़ानूनों के अंतर्गत देश में विलीन हुई। इनमें से कुछ को कुछ स्वायत्ता व स्वतन्त्रता भी दी गई।लेकिन समयानुसार बदलती हुई परिस्थितियों में देश के संवैधानिक प्रावधानों में परिवर्तन किया गया और देश के जनतान्त्रिक मूल्यों और मर्यादाओं और संवैधानिक आधारों पर इसमें समय सामी पर परिवर्तन भी हुए।
आज की परिस्थितियों में लोकतांत्रिक स्वरूप को कायम रखते हुए ही भारतीय जनता पात्रती की सरकार ने पूर्ण बहुमत के आधार पर जम्मू- कश्मीर और लद्दाख के लिए संविधाय की धाराओं में परिवर्तन करते हुए इनको केंद्र शासित प्रदेशों मे शामिल किया और देश के एक कानून और एक ही मर्यादा के अनुसार उनका पूर्ण विलय किया। इस संबंध में व्यापक चर्चा देशव्यापी अखबारो में होती रही है। लेकिन कुछ निहित स्वार्थों के लोग और राजनैतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं॥यहा तक की देश के जनतांर्तिक संविधान को ही चुनौती देते हुए अमर्यादित होकर इस संबंध में भारत के शत्रु देशों चीन और पाकिस्तान से भी इसके लिए सहयोग की मांग कर रहे है की 370 व 35 ए धारा को पुनः लागू किया जाए॥यह देश द्रोह के स्तर तक ले जाए जाने की तैयारी हो रही है॥जिसे भारत के लोग किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते।